मंगलवार, 21 अगस्त 2007

इलाहाबादी चिट्ठाकार सम्मेलन (न कि राजा रंक)

यह सच है कि हम चिट्ठाकार सम्मेलन के बारे में कुछ लिख नही सके, इसकी वजह मेरा आलस नही बल्कि मेरी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं हैं, जिनकी वजह से मैं चिट्ठाकारी करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा हूं।
खैर, जब महाशक्ति ने मुझे झिंझोड़ दिया है तो……… झेलिए…….
श्री रामचन्द्र मिश्रा ने मुझे फोन किया, आपसे मिलना है। बस समय, तिथि, स्थान सब नियत हो गया। 12.08.2007 को मेरे घर पर आने के लिए मिश्रा जी ने मेरा पता पूछा तो मैंने विज्ञान संकाय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्हें अपने साथ प्रमेन्द्र को भी लाने को कहा।(मुझे कहना पड़ा) वहां से हम सब हमारे घर आए। बिजली नही थी। खुले में बैठे। विस्तृत परिचय हुआ। शायद चाय पी गयी थी।
महाशक्ति के प्रणेता को देख कर ऐसा लगा कि ये शारीरिक रूप से महा(न)शक्ति हैं। मिश्रा जी की कद काठी मेरी सोच के अनुरूप ही थी। इन दोनो को पता था कि मेरे घर पर भोजन करना है किन्तु फिर भी ये दोनो हैवी ब्रेकफास्ट लेकर आए थे; इसके लिए इन्हें हमारी अर्धांगिनी की शिकायतें भी सुननी पड़ीं। खाने के मामले में महाशक्ति ने मिश्रा से बाजी मार ली; पंडित तो केवल नाम का ही निकला। मिठाई तक बच कर वापस चली गयी।
भोजन के उपरान्त हम लोग कम्प्युटर पर बैठे ही थे, कुछ चर्चा करते, बिजली पुन: चली गयी। फिर कुछ फोटोग्राफी/विडिओग्राफी हुई। इसके पश्चात हम तीनों एक अन्य चिट्ठाकार सोमेश पाण्डेय (ब्लॉग: नवविहान) के साथ श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी के घर पहुचें। परिचय, नाश्ता, फोटोग्राफी/विडिओग्राफी सभी कुछ हुआ। सभी प्रमुख व अप्रमुख चिट्ठकारों के बारे में चर्चा हुई। सबकी मेरिट्स/डिमेरिट्स पर बहस हुई। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो नही होकर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में समर्थ होते हैं। इन्हें बाहुबली तो नही किन्तु विचारबली अवश्य कहा जा सकता है; (फिर वो चाहे उड़न तश्तरी, मसिजीवी, घुघूती बासूती, श्रीश, काकेश, फुरसतिया, जीतेन्द्र चौधरी, रवि रतलामी, धुर विरोधी, संजय बेंगाणी, मोहल्ला, आलोक पुराणिक, दीपक बाबू, पंगेबाज, ममता टीवी, अन्तर्ध्वनि इत्यादि जैसे छ्द्म नामों से क्यूं ना जाने जाते हों) उन सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
कुछ बात ज्ञान दत्त जी की “सिराघात…..” वेबसाइट की भी हुई; जिसके संबंध में उन्होनें बताया कि चिकित्सकीय शब्दावलियों का अनुवाद एक प्रमुख समस्या है। इसका हल खोजने में वे सतत प्रयत्नशील हैं। महाशक्ति, ज्ञानदत्त जी व उपर्वर्णित विचारबली गण चिट्ठाकारी के लिए कैसे समय निकालते हैं, यह एक अनुत्तरित प्रश्न रह गया, कृपया आप ही बताएं। हां ज्ञानदत्त जी ने यह अवश्य कहा कि यह तो एक स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया है, बस हो रही है, जिस दिन बन्द हो गयी समझो बन्द। महाशक्ति ने भी बताया कि जिस दिन उनके ब्लॉग लेखन के समक्ष पित्राज्ञा खड़ी हो गयी, उसी दिन से मामला खल्लास।
एक बात बताइए आप अभी तक बोर नही हुए………….? नही? तो लीजिए कुछ फोटो देखिए, और हां इस मिलन समारोह में आप अपने ना होने का दुख मना रहें हैं तो बस अपना दुखड़ा यहीं रोयें; धन्यवाद।

सोमेश व प्रमेन्द्ररामचंद्र मिश्रा, संतोष व....ज्ञानदत्त जी