मंगलवार, 21 अगस्त 2007

इलाहाबादी चिट्ठाकार सम्मेलन (न कि राजा रंक)

यह सच है कि हम चिट्ठाकार सम्मेलन के बारे में कुछ लिख नही सके, इसकी वजह मेरा आलस नही बल्कि मेरी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं हैं, जिनकी वजह से मैं चिट्ठाकारी करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा हूं।
खैर, जब महाशक्ति ने मुझे झिंझोड़ दिया है तो……… झेलिए…….
श्री रामचन्द्र मिश्रा ने मुझे फोन किया, आपसे मिलना है। बस समय, तिथि, स्थान सब नियत हो गया। 12.08.2007 को मेरे घर पर आने के लिए मिश्रा जी ने मेरा पता पूछा तो मैंने विज्ञान संकाय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्हें अपने साथ प्रमेन्द्र को भी लाने को कहा।(मुझे कहना पड़ा) वहां से हम सब हमारे घर आए। बिजली नही थी। खुले में बैठे। विस्तृत परिचय हुआ। शायद चाय पी गयी थी।
महाशक्ति के प्रणेता को देख कर ऐसा लगा कि ये शारीरिक रूप से महा(न)शक्ति हैं। मिश्रा जी की कद काठी मेरी सोच के अनुरूप ही थी। इन दोनो को पता था कि मेरे घर पर भोजन करना है किन्तु फिर भी ये दोनो हैवी ब्रेकफास्ट लेकर आए थे; इसके लिए इन्हें हमारी अर्धांगिनी की शिकायतें भी सुननी पड़ीं। खाने के मामले में महाशक्ति ने मिश्रा से बाजी मार ली; पंडित तो केवल नाम का ही निकला। मिठाई तक बच कर वापस चली गयी।
भोजन के उपरान्त हम लोग कम्प्युटर पर बैठे ही थे, कुछ चर्चा करते, बिजली पुन: चली गयी। फिर कुछ फोटोग्राफी/विडिओग्राफी हुई। इसके पश्चात हम तीनों एक अन्य चिट्ठाकार सोमेश पाण्डेय (ब्लॉग: नवविहान) के साथ श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी के घर पहुचें। परिचय, नाश्ता, फोटोग्राफी/विडिओग्राफी सभी कुछ हुआ। सभी प्रमुख व अप्रमुख चिट्ठकारों के बारे में चर्चा हुई। सबकी मेरिट्स/डिमेरिट्स पर बहस हुई। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो नही होकर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में समर्थ होते हैं। इन्हें बाहुबली तो नही किन्तु विचारबली अवश्य कहा जा सकता है; (फिर वो चाहे उड़न तश्तरी, मसिजीवी, घुघूती बासूती, श्रीश, काकेश, फुरसतिया, जीतेन्द्र चौधरी, रवि रतलामी, धुर विरोधी, संजय बेंगाणी, मोहल्ला, आलोक पुराणिक, दीपक बाबू, पंगेबाज, ममता टीवी, अन्तर्ध्वनि इत्यादि जैसे छ्द्म नामों से क्यूं ना जाने जाते हों) उन सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
कुछ बात ज्ञान दत्त जी की “सिराघात…..” वेबसाइट की भी हुई; जिसके संबंध में उन्होनें बताया कि चिकित्सकीय शब्दावलियों का अनुवाद एक प्रमुख समस्या है। इसका हल खोजने में वे सतत प्रयत्नशील हैं। महाशक्ति, ज्ञानदत्त जी व उपर्वर्णित विचारबली गण चिट्ठाकारी के लिए कैसे समय निकालते हैं, यह एक अनुत्तरित प्रश्न रह गया, कृपया आप ही बताएं। हां ज्ञानदत्त जी ने यह अवश्य कहा कि यह तो एक स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया है, बस हो रही है, जिस दिन बन्द हो गयी समझो बन्द। महाशक्ति ने भी बताया कि जिस दिन उनके ब्लॉग लेखन के समक्ष पित्राज्ञा खड़ी हो गयी, उसी दिन से मामला खल्लास।
एक बात बताइए आप अभी तक बोर नही हुए………….? नही? तो लीजिए कुछ फोटो देखिए, और हां इस मिलन समारोह में आप अपने ना होने का दुख मना रहें हैं तो बस अपना दुखड़ा यहीं रोयें; धन्यवाद।

सोमेश व प्रमेन्द्ररामचंद्र मिश्रा, संतोष व....ज्ञानदत्त जी

रविवार, 27 मई 2007

चुंतन : चेन्नई में संतोष

मैं दिनांक 30.05.2007 की सुबह चेन्नई पहुंचुंगा व दिनांक 02.06.2007 को वहां से वापस चलूंगा। मेरे स्टैट काउन्टर से पता चलता कि मेरे ब्लॉग को चेन्नई में भी पढ़ा जाता है। यदि मेरी मुलाकात किसी ब्लॉगर बन्धु से होती है तो मुझे बहुत खुशी होगी। मेरा मोबाईल नम्बर 09415845958 है। अपनी यात्रा का वृतांत मैं वहां से लौट कर लिखूंगा।

शुक्रवार, 25 मई 2007

आइये एक नेक कार्य करते हैं।

प्रिय ज्ञान दत्त;
हमारे वेब पर उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कर भारत में एक ब्लॉग पर पोस्ट करने के संबंध में मस्तिष्क आघात संसाधन केन्द्र (Brain Injury Resource Center) से संपर्क करने के लिए धन्यवाद । जैसा कि आपने बताया कि “भारत के प्रभावी हिन्दी जन मानस की सुविधा के लिए, मेरे द्वारा निर्मित की जाने वाली प्रस्तावित वेब साइट पर सामग्री का हिन्दी में अनुवाद करूंगा। जहां आवश्यकता होगी, आपके स्रोत का मैं उल्लेख करूंगा और उस सामग्री या अनुवाद पर किसी भी प्रकार के अधिकार का दावा नही करूंगा ।” तथाकथित सूचनाओं के प्रयोग, जैसा कि कहा गया है, से संबंधित प्रस्ताव से मैं सहमत हूं । इस सामग्री के स्रोत के लिए मस्तिष्क आघात संसाधन केन्द्र (Brain Injury Resource Center) http://www.headinjury.com/ को श्रेय दीजिए ।पुन:, मस्तिष्क आघात संसाधन केन्द्र से सम्पर्क करने के लिए धन्यवाद, मुझे विश्वास है कि दी गई सूचनाओं से आपको सहायता मिली होगी । २०६-६२१-८५५८
विश्वासपात्र,
कॉन्सटैन्स मिलर, एम ए
मस्तिष्क आघात संसाधन केन्द्र
पी.ओ. बॉक्स ८४१५१
सीएटल डब्ल्यू ए ९८१२४-५४५१
यह श्री ज्ञान दत्त जी को भेजे गये ई मेल का हिन्दी अनुवाद किया गया है ।
आइये इस महान कार्य के लिए हम सब मिल कर ज्ञान दत्त जी के महायज्ञ में सम्मिलित हों ।

ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल: ब्रेन-इंजरी पर वेब साइट – आइये मित्रों !

ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल: ब्रेन-इंजरी पर वेब साइट – आइये मित्रों !

गुरुवार, 24 मई 2007

लेखनगत प्रसव पीड़ा

छछून्दर के सिर और तेल के संबंध के बारे में एक विचार मेरे दिमाग में कुलाटी मार रहा था, मैं उसे लिखना चाहता था कि फुरसतिया अंकल का अखबार सामने आ गया और उसे पढ़ने में ऐसा खो गया कि जब मुझे लेखनगत प्रसव पीड़ा होने लगी तब होश आया । आप सोच रहे होगे यह कैसी प्रसव पीड़ा है? आइए पहले इसी को डिसकस लेते हैं, छछून्दर के सिर और तेल को किसी और फुरसत में निपटा लेंगे।
विशेषता :-
1. यह पीड़ा स्त्री/पुरुष/मध्यमा किसी को भी हो सकती है।
आवश्यक उपकरण :-
1. दिमाग में लेखन कृमि व उसके रहने लायक एक निजी फ्लैट।
लक्षण :- मानव
1. की प्रकृति गम्भीर हो जाती है,
2. विचार मग्न सा दिखता है,
3. की आंखों में तेज उत्पन्न हो जाता है,
4. की जेब में रखी कलम में स्वत: स्फ़ूर्त हरकत होने लगती है या फिर उंगलियां की बोर्ड पर टाईप करने जैसी हरकतें करने लगतीं हैं,
5. की तर्क शक्ति अचानक मुखर हो जाती है,
6. की रुचि के अनुसार चाय, सिगरेट इत्यादि की तलब होने लगती है।
पीड़ा होने पर क्या करें :-
1. मोबाईल फोन स्विच ऑफ कर दें,
2. अपने आप को कमरे के अंदर बंद कर लें,
3. रुचि के अनुसार चाय, सिगरेट इत्यादि ले सकते हैं,
4. कम्प्यूटर या कॉपी खोल कर बैठ जाएं,
5. अपनी अन्य दिनचर्या/कार्यक्रम बिल्कुल भूल जाएं।
पीड़ा होने पर क्या न करें :-
1. ऐसा कोई कार्य जिससे लेखन कृमि सुस्त पड़ जाए, जैसे घर की समस्याओं पर विचार, बच्चों को पढ़ाना इत्यादि,
2. शारीरिक हरकतें जैसे चलना, दौड़ना, उछलना, मार्केटिंग, ट्रैवेलिंग इत्यादि, इनके करने पर मिस कैरेज होने की आशंका बलवती होती है।
उपचार :-
इस पीड़ा का कोई उपचार अभी तक नही खोजा जा सका है; वैज्ञानिक शोध में लगें हैं। आविष्कार होने पर आपको युरेका-युरेका गायन मंडली में शामिल किया जाएगा।
परिणाम :-
गद्य, पद्य (समीर लाल जी की भाषा में गदहा, पदहा) या फिर ब्लॉग
संतानोत्पत्ति के पश्चात जच्चा की परेशानियों में कोई कमी नही आती, अब उसे छपास का रोग घेर लेता है।
उपसंहार :-
जब आप लेखनगत प्रसव पीड़ित होते हैं और उपरोक्त से इतर कोई अनुभूति होती हो तो कृपया मेरी और पाठकों की जानकारी अवश्य बढ़ाएं।

मंगलवार, 22 मई 2007

ब्लॉग लेखन: एक नशा

ब्लॉग लेखन
पहले, आन चढा
अब, शान चढा
फिर, मान चढा
अंतत:, जान चढा।

सोमवार, 21 मई 2007

काश्मीर से कन्याकुमारी तक मेरा ही मुल्क है।

कल शाम 6 बजे लगभग मैं सपत्निक अपनी बाइक से जा रहा था, रास्ते में फुटपाथ पर एक व्यक्ति पडा हुआ था। शरीर में कोई हलचल नही थी। पत्नी ने कहा, देखो कैसे पडा है, कोई साधु लगता है; मैंने कहा होगा और हम आगे बढ गये। लगभग 3 घंटे बाद हम लौटे तो वह “साधु” ज्यों का त्यों पडा हुआ था। हम कयास लगाने लगे, गर्मी इतनी पड रही है, हो सकता है कि गर्मी की वजह से मर गया हो या कोई और बात हो, पता नहीं । लेकिन रात भर में तो इसको आवारा कुत्ते नोच डालेंगे। मन है, कह रहा था पुलिस को सूचना दे दो, कम से कम जिन्दगी के बाद लाश को तो सही मुकाम मिल जाए। लेकिन पुलिस …….। हिम्मत नही पडी। रात में काफी देर तक सोचता रहा, कैसे हुआ होगा, अब क्या होगा?...... इत्यादि।
नही रहा गया, सुबह मैं फिर उसे देखने गया कि यदि रात में कोई अन्यथा गडबड न हुई हो तो “उसका” कुछ प्रबंध किया जाए। वहां का दृश्य मुझे उसकी फोटो खींचने पर मजबूर कर दिया। आप भी देखें।
अब सोचता हूं कि शायद उसे कल इस जीवन से मुक्ति मिल गयी होती तो उचित ही होता। है कोई मोहल्ला जहां ऐसे लोग न हों और है कोई मोहल्ला जहां ऐसे लोग ना हों।

छमहुं क्षमा मंदिर सबै भ्राता

वाह रे Anonymous…... में नारद व अपने प्रेरणा स्त्रोत के प्रति की गयी टिप्प्णी के लिए हृदय से क्षमा याचना करता हूं। मेरी वह पोस्ट मेरा कोई लेख या संस्मरण नही है; वह तो भावातिरेक में मेरा क्षोभ था जो बस निकल गया, किसी को भी कष्ट पहुंचाने का मेरा उद्देश्य नही था।
मुझे कम्प्युटर, इंटरनेट इत्यादि के बारे में तकनीकी जानकारी नही है, बस इधर उधर हाथ पांव मारते हुए जो सीख लिया उसी पर जो चाहे उछल लूं। मेरी इस पोस्ट पर आप लोगों की जो प्रतिक्रियाएं मेरे पास आयीं, उन सबको मैंने आत्मसात किया। मेरे सभी भाईयों ने मुझे जिस प्यार से डांटा व समझाया उससे मुझे इस बात की अनुभूति हुई कि मैं जाने अनजाने एक ऐसे परिवार से जुड गया हूं जिससे अलग हो पाना मेरे लिये कम से कम इस जीवन में संभव नही है।
मैं उक्त पोस्ट में नारद व अपने प्रेरणा स्त्रोत के प्रति की गयी टिप्प्णी वापस लेता हूं और आप सभी द्वारा क्षमा किये जाने के इंतजार में……….

शुक्रवार, 18 मई 2007

वाह रे Anonymous

मैं पूछता हूं नारद के कर्णधारों से कि क्या इस तरह की टिप्पणियां भी की जाती हैं किसी लेख के प्रति? (यदि आपको जानना है तो कि क्या टिप्पणी की गई है तो मुझे somsanson@yahoo.com पर अंग्रेजी में भाषा में सम्पर्क करें।)यदि ऐसा है तो क्या फर्क रह गया नारद और किसी पोर्न फिल्में दिखाने वाली साईट्स में? मेरे प्रेरणास्त्रोत से भी मैं यही बात पूछता हूं। इस टिप्पणि के जनक Anonymous ने तो अपने संस्कार दिखा दिये और मैंने उस टिप्पणी को मिटा दिया लेकिन क्या इस तरह की घटना को रोकने की जिम्मेदारी नारद की नही है? अगर नही है तो यह अच्छी बात नही है। इस टिप्पणी ने मुझे इतना मर्माहत किया है कि शायद यह मेरे ब्लॉग लेखन के अंतिम शब्द होंगे, क्योंकि इस चिट्ठे में मेरी बेटी का जिक्र हुआ है और फिर ऐसा कमेंट। नारद के कर्णधारों अगर आपने अपनी जिम्मेदारी इस घटना के मद्देनजर नही उठाई तो मेरा नारद को अतिशय श्राप होगा और श्रृधांजलि भी।

पत्नी से प्यार भरी मीठी मीठी बातें करने का कोई नुस्खा है?

मैं सपत्नीक, छत पर कल शाम के सुहावने मौसम का आनन्द ले रहा था। कुछ नारदी चिट्ठों की, आसपास की गतिविधियों की बातें हो रही थीं; जैसा कि आम तौर पर होता ही रहता है। लेकिन कल कुछ ऐसा हो गया कि मुझे यहां तक आना पड गया…
हम कुछ देर के लिये मौन हुए और छत पर मैं, मेरी पत्नी और एक सन्नाटा रह गए; अचानक मेरी पत्नी कहती है कि तुम मुझसे प्यार भरी बातें करो।
मानो मुझे बिजली का तेज झटका लगा, मैं लेटा था, उठ कर बैठ गया। प्रश्नवाचक निगाह के साथ मैं ने पूछा – क्या?
पत्नी ने झिडकते हुए प्रतिप्रश्न किया- सुनाई नही पड रहा है क्या? कह रही हूं मुझसे प्यार भरी मीठी मीठी बातें करो।
शादी के पन्द्रह वर्ष गुजरने के बाद पहली बार ऐसी, नही नही, ये कैसी फरमाईश।/? मैं हतप्रभ, अवाक, हैरान, चकित और न जाने क्या क्या ! मेरी चेतना लौटती उसके पहले पत्नी ने अपनी आवाज का डंडा फिर चलाया – सुन नही रहे हो क्या, मेरी यह फरमाईश भी पूरी नही कर सकते? मेरा पुरुषत्व हिल गया, ऐसा लगा मेरी पन्द्रह वर्षों की पत्नीसाधना/गृहस्थी/जवानी सब चकनाचूर।
किसी प्रकार अपने को संभाला और इसके पहले कि कोई और आरोप मढ दिया जाए मैं शुरू हो गया (मुहुर्त निकाल कर और लक्ष्य बना कर अपनी पत्नी से प्यार भरी मीठी मीठी बातें करना कितना दुरूह कार्य है मुझे इसका ज्ञान प्राप्त हो गया) ………
-- हे प्राण प्रिये, हे सखी, देखो कैसी मन्द मन्द वायु बह रही है, पंक्षी हवा में उड रहे हैं, सूरज अपने …..
पत्नी ने बीच में टोका – ये प्यार भरी बातें हैं? यह तो सब मुझे पता है जो तुम मुझे बता रहे हो। तुम केवल प्यार भरी बातें करो, समझे?
मैंने पुन: प्रयास किया – हे मेरी प्यारी, मेरी जानेमन, जान-ए-जिगर तुम इस सुहावने मौसम में मेरे लिये मेनका हो, रम्भा हो, अप्सरा हो। मैं तुम्हें अपने प्राणों से…….
पत्नी गुस्से में मुझे हडकाते हुए बोली- मौसम की आड में मेनका, रम्भा, अप्सरा को याद कर रहे हो। तुम एक बात साफ साफ बताओ कि मुझसे प्यार भरी बातें करोगे या नहीं।
मैंने अपना आखिरी दांव चल दिया – माई डीयर डार्लिंग, मैं इस बार के बोनस पर तुम्हें एक काश्मीरी सिल्क की साडी, एक मिडिल हाई हील की सैंडिल, एक जोडी पायल…..
चु्प्पप। पत्नी चिघ्घाडी। मुझे रिश्वत देने की कोशिश हो रही है। अरे फॉर गॉड सेक मुझसे प्यार भरी बातें करो।
मैने कहा, मैं अभी जा रहा हूं नारद जी के पास, देखता हूं किसी चिट्ठाकार के पास अपनी पत्नी से प्यार भरी मीठी मीठी बातें करने का कोई नुस्खा है, अगर मिल गया तो बल्ले बल्ले, नही तो….. नही तो का तो सवाल ही नही उठता, मेरा दाम्पत्य जीवन खतरे में पडा है… help me.

गुरुवार, 17 मई 2007

मेरी बेटी और डेरा सच्चा सौदा |

कल शाम को ऑफिस से घर लौटा तो देखा कि मेरी बेटी (सोनल) काफी गम्भीर व क्रोधित मुद्रा में थी। मैंने पूछा कि सोना बेटा क्या हुआ? बस, जैसे कि आतिशबाजी वाली चटाई में किसी ने माचिस लगा दी हो।
हम उससे नही बोलेंगें, कभी उसके घर नहीं जाएंगें और मेरे घर में आया तो उसको दो झापड मारेंगें ।
मैंने तापमान का अंदाज लगाते हुए अपनी पत्नी से इशारे से पूछा कि क्या हुआ ? उसने भी अपने कंधे उचका दिये। अंतत: मैने सोना बेटा से फिर पूछा
– बेटा अब यह तो बताइये पापा को कि हुआ क्या है, आप किससे इतना नाराज हो?
मेरी सोनल आकर मेरी गोद में बैठ गयी और बताने लगी…..
- वो जो पिन्कू (पडोस में रहने वाला एक बच्चा) है ना, बहुत गन्दा है; हम उससे कभी बात नही करेंगें, उससे कुट्टी कर लिए हैं हम।
- मैने कहा ..ठीक है पर हुआ क्या?
- पापा वो पिन्कू न, दिन में आया था और भइया की चप्पल पहन कर उन्ही की तरह चलने लगा और कह रहा था कि मैं भइया बन गया।
- तो क्या हो गया?
- मेरा तो एक ही भइया है कोई और कैसे मेरा भइया बन सकता है।
- पगली उसके कहने से वो तुम्हारा भइया बन गया क्या ? अच्छा यह बताइये कि जब मैं ऑफिस से आता हूं तो कौन मेरा जूता रखता है और मेरे लिये चप्पल लाता है ?
- मैं,
- कभी कभी आप मेरी चप्पल पहन कर आतीं हैं कि नहीं ?
- तो क्या आप पापा बन जाती हैं ?
- नहीं, पर वो तो आप कहते हैं इसलिये और मैं आपकी बेटी हूं तो मैं, तो ऐसा कर सकती हूं न । लेकिन वो तो बाहर वाला है फिर वो ऐसा कैसे कर सकता है ?
- मेरी सुन्दर बेटी, चाहे वो बाहर वाला हो या फिर आप हों किसी की चप्पल पहन लेने से वो चप्पल वाला तो नही बन जाता न ?
- हां, ये तो ठीक है लेकिन वो तो कह भी रहा था ।
- अगर वो कह भी रहा था तो ऐसा कहने से वो भइया की नकल ही तो कर रहा था, न कि भइया बन गया । नकल करने से कोई नकलची तो हो सकता है लेकिन भइया या पापा तो नहीं बन जाएगा न ।
-सोनल कुछ देर सोच कर कहती है .. यस पापा आपकी बात एकदम ठीक है, मुझे तो नाउन चाची (मेरे घर की महरी) ऐसे बता रही थी, इसलिये मैं गुस्सा हो गई थी । मुझे नाउन चाची की बात नही माननी चाहिए थी, वो मुझे उल्लू समझती है और मैं उल्लू बन गयी थी। मैं जा रही हूं पिन्कू से मिल्ली करने।
यह बात मेरी बेटी को तो समझ में आ गयी …………………….?

शनिवार, 5 मई 2007

कालजयी इच्छा

तुम्हीं तो आये थे
मेरे सपने में ;
ठहर गये दिल में
मेरे सपने में;
मुझको पाया तुमने
मेरे सपने में ।
अब,
तुमको पाने की
कालजयी इच्छा
है मेरे अपने में;
हर पल गुजरा
वह पल तकने में
मैं भी पा लूं
मंजिल अपनी
तेरे सपने में।

शुक्रवार, 4 मई 2007

गणतंत्र के त्यौहार : बद्री प्रसाद की किंकर्तव्यविमूढता


बद्री प्रसाद ,एक काल्पनिक चरित्र, को तो पता है पर आप को पता है कि नही यह बद्री प्रसाद को नही पता है कि उसके महान देश में कई गणतांत्रिक त्यौहार/पर्व घोषित किये गये हैं । सबसे बडा त्यौहार आम लोक सभा चुनाव, फिर विधान सभा चुनाव और इसी प्रकार कई और।
इन त्यौहारों में नेताओं के भाषण, रैलियां, सभाएं, आश्वासन, वादे, वादों को पूरा करने की कसमें, गोली, बंदूक, हत्याएं, मार पीट, बूथ कैप्चरिंग व अन्य बहुत कुछ पूरे धूमधाम से मनाए जाते हैं। उपरोक्त किसी भी विधा से बद्री प्रसाद का सीधे तौर पर, कोई लेना देना नही है।
इन पर्वों में एक चीज, नही चीज नही, एक कडी छूट रही है वो है वोट (मत) और इस कडी से बद्री प्रसाद का वास्ता है। यह वास्ता भी कैसा कि संविधान में कह दिया गया है कि वो वोट (मत) देगा। वोट (मत) देने की क्रिया/प्रथा आप सबको पता है, नही पता है तो रूकिए अगला राष्ट्रीय स्तर का पर्व आने दीजिए बद्री प्रसाद आपको बता देगा।
इस प्रथा में एक विवशता है बद्री प्रसाद को अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी एक को चुनना है। किसी भी चुनाव में कम से कम दो प्रत्याशी होते हैं, अधिकतम की कोई सीमा निर्धारित नही है। जितने भी प्रत्याशी हों; क्या यह आवश्यक है उनमें से कोई बद्री प्रसाद द्वारा स्थापित मानदण्डों पर खरा उतरे यानि उसकी पसंद का हो; नही कोई आवश्यक नही । फिर बद्री प्रसाद को विवश होकर उन्ही नापसंद प्रत्याशियों में से किसी एक को अपने प्रतिनिधि के रूप में अधिकृत करना होगा। कहते हैं यह उसका अधिकार है। ऐसी विवशता क्यूं?
इस विवशता के दुष्परिणाम :-
1. अपने नापसंद प्रत्याशियों में से किसी एक को वोट (मत) देने के लिये बद्री प्रसाद को कोई cut off list बनानी होगी । यानि अपने अधिकार को प्रयोग करने के लिये बद्री प्रसाद को समझौता करना होगा।
2. उसकी पसंद पूरी ना होने की स्थिति में वोट (मत) देने के लिये वो जिन अन्य आधारों का प्रयोग करेगा उनमें प्रत्याशी की जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग, व्यवहार, चरित्र, पहनावा, चढावा, प्रत्याशी तक अपनी पहुंच की सहजता, उंचाई, रंग, वजन इत्यादि कुछ भी हो सकता है।
3. मद संख्या 2. की स्थिति में बद्री प्रसाद प्रत्याशी के किसी भी आयाम का पक्षधर हो सकता है यानी चुनाव में कोई पक्ष/कदम विवशता में लिया/उठाया गया है फिर चुनाव निष्पक्ष कैसे हुआ?
4. चुनाव की निष्पक्षता संदिग्ध होने की स्थिति में बद्री प्रसाद का आचरण भ्रष्ट है, इस तथ्य को बल मिलता है। भ्रष्ट आचरण का एक बीज वोट (मत) देने की क्रिया/प्रथा में आधिकारिक तौर पर उपस्थित है।
5. हम जाने अनजाने इस बीज को खाद/पानी दे रहे हैं और कहते हैं कि यह हमारा अधिकार है।
इसलिये बद्री प्रसाद सोचता कि वो वोट क्यूं दे ?
किंकर्तव्यविमूढ खडा है
फिर सोच रहा है …..
विवशता को दूर करने का उपाय :- {बद्री प्रसाद की नजरों में}
1. प्रत्याशी चुनते समय हमें यह विकल्प दिया जाए कि उपरोक्त में से कोई नहीं ।
2. इस विकल्प के चुनाव की गणना उसी प्रकार से हो जैसे कि किसी प्रत्याशी को दिये गये वोटों की।
3. यदि उपरोक्त में से कोई नहीं प्रत्याशी को सर्वाधिक वोट मिलें [अनुमान है कि ऐसा ही होगा] तो राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था हो।
विशेष :- 1. उपरोक्त में से कोई नहीं विकल्प के होने से गिरता हुआ मतदान प्रतिशत दीवाली में चलाए गये रॉकेट्स की तरह बढेगा।
2. बद्री प्रसाद किंकर्तव्यविमूढता की स्थिति में इस लेख को फिर पढता है और लेख के अनुच्छेद तीन में संविधान में कही गयी बात मान लेता है और संवैधानिक कदम उठाकर संतुष्ट हो जाता है। यह बात आपकी समझ में नही आई, मैं समझाता हूं, अभी जब बद्री प्रसाद अनुच्छेद तीन में संविधान में कही गयी बात पढ रहा था तो उसे कोई ( ) कोष्ठक दिखाई नही पडा।

बुधवार, 2 मई 2007

100X100 फुट जमीन का टुकडा:एक अभियोजन

विषय :- 100X100 फ़ुट जमीन के एक टुकडे का अभियोजन ।
संदर्भ :- थोडी दूर (शायद 10 खरब प्रकाश वर्ष) पर एक नयी पृथ्वी की खोज।
आरोप :- बद्री प्रसाद नयी पृथ्वी पर 100X100 फ़ुट का एक टुकडा खरीदना/हडपना/कब्जियाना चाहता है।
पात्र परिचय :-
आरोपी :- बद्री प्रसाद (एक काल्पनिक चरित्र)
अभियोजन स्थल :- अंतर ब्रह्माण्डीय उच्च न्यायालय/केम्फोरन ग्रह (काल्पनिक नाम)
जज :- झेलस्टॉन ग्रह (काल्पनिक नाम) से विद्वान न्यायमूर्ति माननीय श्री अढाईसिरवाला (काल्पनिक नाम) (home planet का जज होने से पक्षपात की आशंका हो सकती है।)
सरकारी वकील :- फ़्युरिओला (काल्पनिक नाम) ग्रह से श्री डेढसिरवाला (काल्पनिक नाम) (home planet का सरकारी वकील होने से पक्षपात की आशंका हो सकती है।)
गैर सरकारी वकील :- कोई नही; बद्री प्रसाद अपना केस खुद लडेगा।
अभियोजन प्रक्रिया :- आरोपी की plantality के अनुसार; ताकि वो feel at earth कर सके।
लाइट/कैमरा/एक्शन :- (कमरे के अंदर लाइट जला दी गयी , एक्शन शुरु)
जज : मुकदमे की कार्यवाई शुरु की जाए।
स०व०: मी लार्ड, मुल्जिम श्री बद्री प्रसाद, मैसिली (खोजे गये ग्रह का काल्पनिक नाम) पर 100X100 फ़ुट का जमीन का एक टुकडा खरीदना/हडपना/कब्जियाना चाहता है।
ब०प्र० : सरकार की जय हो । सरकार हम पहिलै ई बता देयावा चाहित ही कि हमैं बोले का सहूर तौ है नही। तौ जउन गलती होवै माफ किया जाए सरकार। अब सरकार ई जउन अपने खोपडी में आधी खोपडी अउर घुसेडे हैं , हमार मतबल सर्कारी उकील साहेब हमरे उपर जउन अरोप लगाय रहा हन, एमे हम कउन कानून तोड डारे हैई साहेब, तनी खुल कै बतावा जाय ।
जज : मि. डेढसिरवाला मुल्जिम को आरोप स्पष्ट किया जाए।
स०व० : यस मी लार्ड । बद्री प्रसाद, तुमने, BPC (ब्रह्माण्डीय पीनल कोड ) की धारा 842/2-1 (जिसमें कहा गया है कि Homo sapiens प्रजाति के किसी भी सदस्य को कभी भी कोई वस्तु/अवसर जिसका संबंध धर्म, अर्थ, काम से हो, इस प्रकार से मिले कि वो इसका बिना किसी रोक टोक के, असीमित परिमाण व परिमाप में प्रयोग कर सके तो वह कोई सीमा निर्धारित नही करेगा) व धारा 1684/4-1 (जिसमें उपर्वर्णित धारा मे स्पष्ट की गयी स्थिति से Homo sapiens प्रजाति के किसी भी सदस्य का साबका पडता है तो वह मात्र आधिपत्य स्थापित करेगा और उस वस्तु/अवसर का अधिपति होगा ) का उल्लंघन किया है। तुम्हारे इस कृत्य से BPC (ब्रह्माण्डीय पीनल कोड ) की धारा 420/1-0 (जिसमे यह स्पष्ट्या आदेशित किया गया है कि उपर्वर्णित दोनो धाराओं के क्रियान्यवन हेतु स्वर्गलोक में स्थापित देवताओं की खण्ड पीठ मानव मस्तिष्क में आवश्यक जीन्स/डीएनए/आरएनए इत्यादि की स्थापना करेगी और सुनिश्चित करेगी कि कोई गलत पीस बहिर्गामी ना हो जाए लेकिन यदि कोई गलत पीस बनता/बहिर्गामी होता है तो पता चलते ही उस पीस को नष्ट किया जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार देवता को उसकी स्थिति/रैंक के अनुसार निर्धारित कालावधि हेतु असुर योनि में भेज दिया जाएगा) का उल्लंघन हुआ है।
जज : बद्री प्रसाद, क्या तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया ? यदि हां तो तुम्हे कुछ कहना है?
ब०प्र० : हां माई बाप, तनि तनि समझ में आवा है लेकिन हमरे कहे खातिर ई है कि हम ई पृथ्वी मा इलाहाबादे मा रहित है, हमरे एक बीबी, पांच लडकियन अउर तीन बेट्वा हन;……….
जज : (बीच में हस्तक्षेप करते हुए) एक मिनट बद्री प्रसाद, तुमने तो शायद समझ लिया पर आखिरी फ़ैसला तो मुझे करना है, इसके लिये मुझे यह आरोप अभी तक समझ नही आया । इसे समझने के लिये मुझे थोडा समय चाहिये । इसलिये इस मुकदमे की अगली तारीख दी जाती है।
(क्रमश:)

सिफ़र

तरन्नुम में तुम जो मिले
हम तुम हमसफ़र हो गये,
छू लिया आसमां
चांद बनकर तुमने
हम सिर्फ़ सिफ़र हो गये।

मंगलवार, 1 मई 2007

चाय के साथी

मैंने चाय की प्याली (पहली) तो यूं ही निकाल ली थी और सोचा था कि अकेले बैठ कर पीऊंगाI मेरा सोचना गलत साबित हुआ; महाशक्ति, जितेन्द्र चौधरी , अरुण, mired mirage, ज्ञान दत्त, अरविंद, संजीव और नीरज मेरी की चुस्कियां लेने आ गयेI मेरे लिये कम्प्यूटर, इंटरनेट साल भर पहले भैंस बराबर था I ब्लॉग, हिन्दी ब्लॉग तो मैं जानता ही नहीं था I कार्यालय व घर के विभिन्न कार्यक्रमों का निष्पादन करते हुए, बिना कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण लिये, आप जैसी सहयोगी संस्थाओं के आशिर्वाद से आप को चाय की प्याली परोसने लायक हो गया हूंI
मेरे प्रथम प्रकाशित ब्लॉग लेखन पर मेरी हौसला अफजाई के लिये आप सब का हार्दिक धन्यवाद, यह आशा भी जन्म ले चुकी है कि भविष्य में आप मेरे साथ चाय, नाश्ता, दोपहर व रात का खाना ग्रहण करना पसंद करते रहेगेंI

रविवार, 29 अप्रैल 2007

चाय की प्याली

शनिवार का दिन, कार्यालय में लगभग अवकाश का मौहाल; हमारे अधिकारी, आवश्यकतानुसार कभी आ गये , कभी नहींI पिछले शनिवार को आ गये; दिन में ग्यारह बजे साहब का चाय पीने का मूड हो गया I कार्यालय में कोई चपरासी नहीं, किसी की शादी, कोई छुट्टी पर, कोई अनुपस्थितI बहरेहाल चाय बनाने का सामान उपलब्ध था, मैनें चाय बनाई, सबने चाय पीI सामान्य सी बात थीI
मैं कडी धूप में घर आया, शायद धूप लग गयी थी, मैं कुछ देर के लिये सो गया; मेरी पत्नी भी सो रही थी, वो भी थकी थीI बिस्तर पर पडे पडे कुछ मेरे कार्यालय व कुछ उसके स्कूल की बातें; मैने आज अपने कार्यालय में चाय बनाई, यह बात उसको बताईI कुछ देर के बाद मेरी पत्नी ने कहा कि जरा चाय बना के पिला दो I { सामान्यत: शाम की चाय मेरी पत्नी ही बनाती है, कभी नहीं बनाई तो मैनें बना दी} मैनें मना कर दिया, शायद थकावट के कारणI मेरी पत्नी कुछ सोच कर कहती है कि काश मैं तुम्हारी सी.पी.टी.एम (मेरे अधिकारी) होती तो तुम अभी जरूर चाय बना कर पिलातेI मै अपनी समस्त वर्जनाओं के साथ निरुत्तर ही रहा I

गुरुवार, 26 अप्रैल 2007

मैं और मेरी कार

मुझे कार क्यूं लेनी चाहिये? कुछ बेतुका सा प्रश्न नहीं है यह? शायद नहींI स्कूल कालेज के जमाने में तो बडे बडे ख्वाब थे कि आई ए एस/ पीसीएस/उच्चाधिकारी बन जाऊंगा तो अपने खानदान में मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो तथाकथित उच्च मध्यमवर्गीय/उच्चवर्गीय श्रेणी में स्थापित होऊंगा किन्तु कुछ मेरी फ़ितरतें और कुछ नियति; प्रारब्ध में थी रेलवे की स्टेशन मास्टरी; लगे झण्डी दिखानेI सोच लिया अब तो १५० पहियों की गाडी में चलूगां, चार पहियों की गाडी क्या करना हैI १५० पहियों की गाडी में चलने न चलने का क्षेपक फिर कभी, अभी तो पहले चार पहिये से निपट लूंI शादी हो गई, पुरानी प्रिया स्कूटर पर अपनी नई प्रिया को बिठा कर पूरा इलाहाबादी वर्ल्ड टूर कई बार कर लियाI एक पुत्र हो गया तो पुरानी प्रिया में आगे एक छोटी सीट लगवा ली, काम चल गयाI घूमते कालचक्र के साथ एक पुत्री भी हो गयी जो मेरे और नई प्रिया (हांलाकि अब वो भी पुरानी हो गयी थी, जमाने के हिसाब से) के बीच में समायोजित हो गयी लेकिन थोडी और जगह चाहिये थी कि उसी समय नई नई कैलिबर का अवतार हुआ और मुझे उससे इश्क हो गया, मैने अपने इश्क को परवान चढा दियाI मेरे इस इश्क का हनीमून जबलपुर में हुआ जो कि चार साल से कुछ ज्यादा समय तक चला, इसके बाद मैं अपने वतन (इलाहाबाद) लौट आया I अब बच्चे बडे हो गये हैं और संवेदनशील भीI लेकिन कैलिबर की साइज वही है और संवेदनशीलता उसकी भी बढ गई हैI कई बार धूप/बरसात/ठंड की वजह से सपरिवार कैलिबर की सवारी न करने का निर्णय लेने की त्रासदी झेलनी पडीI ऐसा नहीं है कि प्रियाकाल में ऐसी त्रासदी नहीं हुई पर अब इसके एहसास का परिमाण कुछ अधिक बोझिल होरहा थाI
चलो अब कार ले लेंगें, इरादा मजबूती से पैर जमाने लगाI कार भी पसंद कर ली गई; ह्युंडई की सैंट्रो, कार की कम्पनियों के फोन आने लगेI अब इसके लिये आवश्यकता थी धन की, वो तो है ही नही, न कभी थाI इस समस्या का हल विभिन्न वित्तीय संस्थाओं ने अपनी उधार नीति से प्रस्तुत कियाI 85% तक वित्तीय सहयोग, उधार चुकाते रहिये 5-7 वर्षों में ; बात समझ में आ रही थीI मूड पक्का हो गया, इसी बीच मानसिक हलचलों से युक्त एक परम श्रध्देय व चरण वन्दनीय व्यक्तित्व से इस कार प्रसंग पर चर्चा हो गई और फिर.... (कृपया फोटो देखें)
मैं कार लूं यह विचार उनके अनुसार उत्सावर्धक है किन्तु उधार की नीति, नहीं कुनीति के अंतर्गत महापापI
किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु 1. एक से भले दो:- एक तो मैं दूसरा मेरा महाजन (Bank). मुझे पता है कि मैं अभी अपने बूते कार नहीं क्रय कर सकता तो दूसरा मेरी सहायता करने को तत्पर हैI कोई भी निरर्थक मेरी सहायता क्यूं करेगा? निश्चित है कि वो इसकी कीमत मांगेगाI 2. कल का उपभोग आज :- मैं अपनी सामर्थ्य बढाऊं फिर कार खरीदूं; हो सकता है कि मुझे दो से चार वर्ष और लगेंI अर्थात मुझे प्रतीक्षा करनी होगीI यह भी हो सकता है कि उस प्रतीक्षाकाल में मेरी प्राथमिकता परिवर्तित हो जाये और मेरा प्रतीक्षाकाल अधिक और अधिक होता जाये और यह अंतहीन भी हो सकता है यह भी हो सकता है कि मैं ही ना रहूं फिर तो आ चुकी मेरी कारI इसलिये मैं आनेवाले कल को आज लाकर अपनी ईच्छापूर्ति क्यों ना कर लूं? इसके लिये कुछ अतिरिक्त कीमत तो देनी ही होगी, आखिर मैं भविष्य को वर्तमान बना रहा हूंI लीक से हट कर कुछ करने के लिये अतिरिक्त खिंचाव (extra stress), फिर चाहे वो शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हो, लेना तो पडेगा हीI

शनिवार, 7 अप्रैल 2007

जै राम जी की! मैं इसी पृथ्वी पर किसी कोने में रहने वाला एक बंदा हूं, एक पत्नी और दो बच्चों के साथ अपनी जीवन नैया की इस थोपी हुई यात्रा को निरन्तर आकर्षक बनाने का प्रयास कर रहा हूं!