बद्री प्रसाद ,एक काल्पनिक चरित्र, को तो पता है पर आप को पता है कि नही यह बद्री प्रसाद को नही पता है कि उसके महान देश में कई गणतांत्रिक त्यौहार/पर्व घोषित किये गये हैं । सबसे बडा त्यौहार आम लोक सभा चुनाव, फिर विधान सभा चुनाव और इसी प्रकार कई और।
इन त्यौहारों में नेताओं के भाषण, रैलियां, सभाएं, आश्वासन, वादे, वादों को पूरा करने की कसमें, गोली, बंदूक, हत्याएं, मार पीट, बूथ कैप्चरिंग व अन्य बहुत कुछ पूरे धूमधाम से मनाए जाते हैं। उपरोक्त किसी भी विधा से बद्री प्रसाद का सीधे तौर पर, कोई लेना देना नही है।
इन पर्वों में एक चीज, नही चीज नही, एक कडी छूट रही है वो है वोट (मत) और इस कडी से बद्री प्रसाद का वास्ता है। यह वास्ता भी कैसा कि संविधान में कह दिया गया है कि वो वोट (मत) देगा। वोट (मत) देने की क्रिया/प्रथा आप सबको पता है, नही पता है तो रूकिए अगला राष्ट्रीय स्तर का पर्व आने दीजिए बद्री प्रसाद आपको बता देगा।
इस प्रथा में एक विवशता है बद्री प्रसाद को अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी एक को चुनना है। किसी भी चुनाव में कम से कम दो प्रत्याशी होते हैं, अधिकतम की कोई सीमा निर्धारित नही है। जितने भी प्रत्याशी हों; क्या यह आवश्यक है उनमें से कोई बद्री प्रसाद द्वारा स्थापित मानदण्डों पर खरा उतरे यानि उसकी पसंद का हो; नही कोई आवश्यक नही । फिर बद्री प्रसाद को विवश होकर उन्ही नापसंद प्रत्याशियों में से किसी एक को अपने प्रतिनिधि के रूप में अधिकृत करना होगा। कहते हैं यह उसका अधिकार है। ऐसी विवशता क्यूं?
इस विवशता के दुष्परिणाम :-
1. अपने नापसंद प्रत्याशियों में से किसी एक को वोट (मत) देने के लिये बद्री प्रसाद को कोई cut off list बनानी होगी । यानि अपने अधिकार को प्रयोग करने के लिये बद्री प्रसाद को समझौता करना होगा।
2. उसकी पसंद पूरी ना होने की स्थिति में वोट (मत) देने के लिये वो जिन अन्य आधारों का प्रयोग करेगा उनमें प्रत्याशी की जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग, व्यवहार, चरित्र, पहनावा, चढावा, प्रत्याशी तक अपनी पहुंच की सहजता, उंचाई, रंग, वजन इत्यादि कुछ भी हो सकता है।
3. मद संख्या 2. की स्थिति में बद्री प्रसाद प्रत्याशी के किसी भी आयाम का पक्षधर हो सकता है यानी चुनाव में कोई पक्ष/कदम विवशता में लिया/उठाया गया है फिर चुनाव निष्पक्ष कैसे हुआ?
4. चुनाव की निष्पक्षता संदिग्ध होने की स्थिति में बद्री प्रसाद का आचरण भ्रष्ट है, इस तथ्य को बल मिलता है। भ्रष्ट आचरण का एक बीज वोट (मत) देने की क्रिया/प्रथा में आधिकारिक तौर पर उपस्थित है।
5. हम जाने अनजाने इस बीज को खाद/पानी दे रहे हैं और कहते हैं कि यह हमारा अधिकार है।
इसलिये बद्री प्रसाद सोचता कि वो वोट क्यूं दे ?
किंकर्तव्यविमूढ खडा है
फिर सोच रहा है …..
विवशता को दूर करने का उपाय :- {बद्री प्रसाद की नजरों में}
1. प्रत्याशी चुनते समय हमें यह विकल्प दिया जाए कि उपरोक्त में से कोई नहीं ।
2. इस विकल्प के चुनाव की गणना उसी प्रकार से हो जैसे कि किसी प्रत्याशी को दिये गये वोटों की।
3. यदि उपरोक्त में से कोई नहीं प्रत्याशी को सर्वाधिक वोट मिलें [अनुमान है कि ऐसा ही होगा] तो राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था हो।
विशेष :- 1. उपरोक्त में से कोई नहीं विकल्प के होने से गिरता हुआ मतदान प्रतिशत दीवाली में चलाए गये रॉकेट्स की तरह बढेगा।
2. बद्री प्रसाद किंकर्तव्यविमूढता की स्थिति में इस लेख को फिर पढता है और लेख के अनुच्छेद तीन में संविधान में कही गयी बात मान लेता है और संवैधानिक कदम उठाकर संतुष्ट हो जाता है। यह बात आपकी समझ में नही आई, मैं समझाता हूं, अभी जब बद्री प्रसाद अनुच्छेद तीन में संविधान में कही गयी बात पढ रहा था तो उसे कोई ( ) कोष्ठक दिखाई नही पडा।
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