शनिवार का दिन, कार्यालय में लगभग अवकाश का मौहाल; हमारे अधिकारी, आवश्यकतानुसार कभी आ गये , कभी नहींI पिछले शनिवार को आ गये; दिन में ग्यारह बजे साहब का चाय पीने का मूड हो गया I कार्यालय में कोई चपरासी नहीं, किसी की शादी, कोई छुट्टी पर, कोई अनुपस्थितI बहरेहाल चाय बनाने का सामान उपलब्ध था, मैनें चाय बनाई, सबने चाय पीI सामान्य सी बात थीI
मैं कडी धूप में घर आया, शायद धूप लग गयी थी, मैं कुछ देर के लिये सो गया; मेरी पत्नी भी सो रही थी, वो भी थकी थीI बिस्तर पर पडे पडे कुछ मेरे कार्यालय व कुछ उसके स्कूल की बातें; मैने आज अपने कार्यालय में चाय बनाई, यह बात उसको बताईI कुछ देर के बाद मेरी पत्नी ने कहा कि जरा चाय बना के पिला दो I { सामान्यत: शाम की चाय मेरी पत्नी ही बनाती है, कभी नहीं बनाई तो मैनें बना दी} मैनें मना कर दिया, शायद थकावट के कारणI मेरी पत्नी कुछ सोच कर कहती है कि काश मैं तुम्हारी सी.पी.टी.एम (मेरे अधिकारी) होती तो तुम अभी जरूर चाय बना कर पिलातेI मै अपनी समस्त वर्जनाओं के साथ निरुत्तर ही रहा I
10 टिप्पणियां:
शायद वे सही ही कह रही थीं ।
घुघूती बासूती
हिन्दी चिट्ठाकारी (ब्लॉगिंग) मे आपका हार्दिक स्वागत है। किसी भी समस्या के लिए हम आपसे सिर्फ़ एक इमेल की दूरी पर हैं।
भई, वैवाहिक जीवन में 'सरप्राइज' का बहुत महत्व होता है। किसी दिन आप पत्नी जी के बिना कहे चाय बना कर पिलाइए और फिर फर्क देखिए। हम तो जनाब छुट्टी वाले दिन किचन मे जम जाते थे और जो कुछ आता था बनाने की कोशिश करते थे। (दो हफ़्ते के बाद, पत्नी ने हाथ खड़े कर दिए, बोली इतना किचन गन्दा कर देते हो, इससे तो अच्छा है कि मै खुद जल्दी उठ जाऊं। बस जी तब से अब तक, वो छुट्टी वाले दिन जल्दी उठती है।)
आपका हार्दिक स्वागत है/
परिवार में सामांजस्य स्थापित होना चाहिये। कुछ तुम करों तों कुछ हम करें/
जीतू भाई आप के रास्ते मै बहुत पहले चल चुका हू अब मेरा घर के काम मे राय देना ही प्रतिबन्धित है काम करना तो बहुत दूर है मेरे उपर पर्मानेन्ट तैग लग चुका है इन्हे तो चाय का पानी तक उबालना नही आता
अब चाय बनाने जैसा हल्का-फुल्का काम करने में क्या परेशानी हैं? पत्नी ने गणित के सवाल हल करने को तो नहीं कहा था न.
स्वागत है आपका पाण्डेय जी ये तो सामयिक चिंतन है और आपका पोस्ट समसामयिक लेख बहुत बडे गंभीर विषय को चार पंक्तियों में समेटा है पर हमारे ही पढने लायक है हमारी बीबियों को पता चलेगा कि पाण्डेय जी चाय भी बनाते हैं तो खटर पटर कम्प्यूटर पर खतरा छा जायेगा और हमें भी चाय बनाने के लिए समय निकालना पडेगा
स्वागत है आपका चिट्ठा जगत मेँ.
अरविन्द चतुर्वेदी
http:''bhaarateeyam.blogspot.com
बधाई हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है. किंतु चिंतन कैसे चुंतन बन गया इस पर विशेष प्रकाश डालने की कृपा करें. इसका आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी प्रतिपादित करने की असीम कृपा करें पाण्डेय जी
1.mired mirage जी शायद नहीं वे वास्तव में सही कह रही थीI
2.चौधरी साहब धन्यवादI आप तो मात्र किचन ही गन्दा करते थे......I
3.महाशक्ति जी स्वागत के लिये धन्यवाद; यह तो सामंजस्य ही है कि मैंने निरुत्तर रहना ही श्रेयष्कर समझाI
4.अरुण जी, ये जीतु भाई कौन है? क्या आपने मुझे नया नाम दे दिया है? पानी उबालने की रेसीपी मैं आपको अवश्य बताऊंगाI
5.ज्ञान दत्त (सर)जी, उस स्थिति में गणित का सवाल हल करना ज्यादा सुविधाजनक था; उसके लिये बिस्तर से उठना तो नहीं पडताI
6. संजीव जी, स्वागत व उत्साहवर्धन हेतु धन्यवादI आपको चाय बनाने के लिये समय तो निकालना ही पडेगा क्योंकि अब मेरी पत्नी भी ब्लॉग लेखन करना चाहती है, मैं उसे कब तक रोक सकता हूं?
7.अरविन्द जी धन्यवाद, स्वागत के लियेI
8.नीरज जी, बधाई व स्वागत के लिये धन्यवादI चितंन के चुतंन में परिवर्तित होने की प्रक्रिया मैं आपको बताऊंगा, थोडी प्रतीक्षा कीजिएI
भैया ई सब झंझटन से हम अभी दूर ही हूं, अपने राम अकेले चैन की बंशी बजा रहे हैं।
स्वागत है आपका शुभकामनाओं के साथ
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